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Mamta Singh Devaa

Tragedy

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Mamta Singh Devaa

Tragedy

हौसला कम नही हुआ

हौसला कम नही हुआ

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सबके लिए ये 2021 का साल अलग हट कर था शायद मैं ही अकेली शख्स हूँ जिसको कोई ज्यादा फर्क नही महसूस हुआ सिवाय कोरोना का डर छोड़ कर । मैं बहुत कम बाहर जाती हूँ कोई किटी नही ना ही किसी क्लब की मेंबर हूँ ले देकर एक महिला काव्य मंच की सचिव हूँ बस महीने की एक मिटींग होती थी । दिन भर घर का काम या उपर छत पर अपने पॉटरी स्टूडियो में पॉटरी करती हूँ आप सबको आश्चर्य होगा जानकर की मैं तो पहले तीन – तीन महीने अपनी सीढ़िया उतर कर गेट तक नही जाती थी इसलिये ये वर्ष अजीब नही लगा ।


हाँ घर का काम थोड़ा ज्यादा हो गया था लेकिन बेटी गुड़गांव से घर आ गई थी बेटा हमारे पास ही था इस महामारी में सब साथ थे यही खुशी सारा काम झट से करा ले जाती , घर रेस्टोरेंट में तब्दील हो गया था इतना खाना तो कभी भी लगातार नही बना होगा , गैस भी जल्दी खतम हो रही थी । इतने काम के बीच पॉटरी छूटी लेकिन कलम ने रफ्तार पकड़ी इसलिये कुछ ना कर पाने की निराशा से दूर ही रही बस कोरोना का डर बहुत ज्यादा था और अभी भी है आज भी गेस्ट को वेलकम नही करना चाहती हूँ उस वक्त तो सवाल ही नही था , भाई को रक्षाबंधन और भाईदूज पर मना कर दिया क्योंकि असकी सरकारी नौकरी जारी थी गाँव – गाँव जाकर अनाज की खरीदारी देखनी होती थी इसलिये मुझे उससे डर था मैने उससे ये कहा की अगर जिंदा बचेगें तो आगे बहुत से रक्षाबंधन और भाईदूज मनायेगें ।


दुख था तो उनका जिनकी नौकरी छूटने के कारण वापस अपने घर बेहिसाब मुसीबतों का सामना करते हुये पैदल लौटना , साथ में गुस्सा भी था जिन्होंने इस महामारी को मज़ाक समझा अभी भी समझ रहे हैं और सबको इसे बाँट रहे हैं.. ..हमारे बनारस की एक ख़ासियत हमेशा से रही है यहाँ कोई भूखा नही रहता और कोरोना काल में भी नही रहा यहाँ तक की जानवरों के लिए भी खाना बन कर सड़क के किनारे रखा जाता था मैं भी अप्रत्यक्ष रूप से इसमें शामिल थी , मेरा उन सबको सलाम है जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से सबकी सेवा और मदद की । मेरे लिए तो बच्चों का इतने दिन एकसाथ रहना ही इस महामारी की बहुत बड़ी देन थी इसी कारण हौसला कम नही हुआ ना ही निराशा हुई ।


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