हार कहाँ हमने मानी है
हार कहाँ हमने मानी है
हार कहां हमने मानी है।।
जन्म लिया बेटी बनकर जब
दुनियां ने मुंह बिचकाया।
इस पुरुष-प्रधान समाज में
जगह बनाने की हमने ठानी है।
हार कहां हमने मानी है... ।।
भूल गये गौरवगाथा जो
सतयुग से कलयुग तक आते।
अनुसुइया और सावित्री ने
ईश्वर से की मनमानी है।
हार कहां हमने मानी है... ।।
चाहे हो पाताल लोक
या फिर अंतरिक्ष उड़ान।
साहस और बलिदान की गाथा
जग में सबने जानी है।
हार कहां हमने मानी है... ।।
हुई पैदा धरती से सीता
अग्नि जन्मी द्रुपद सुता।
विपदा में मां बन दुर्गा-काली
पार कहां किसने जानी है ?
हार कहां हमने मानी है।