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Vijeta Pandey

Abstract

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Vijeta Pandey

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हाँ मैं इन्सान हूँ

हाँ मैं इन्सान हूँ

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एक अंधी दौड़ का हिस्सा हूँ

आज जिनके लिये जिन्दा हूँ,

कल उन्ही की कहानियों का किस्सा हूॅं

हाँ मैं इन्सान हूँ।


तो क्या जो दो पुश्तों के बाद

कोई मेरा नाम नहीं जानेगा

तो क्या जो मेरी निशानियां

कोई नहीं पहचानेगा

मैं फिर वही गलतियां दोहराउंगा

जो खुशी सामने है उसे झुठलाउंगा

कल को सवारने में, आज मेरा घिसा है

हाँ मैं इन्सान हूँ।


गौर हो कि मेरी हसरते आसमां मुट्ठी में करने की है

तो क्या, जो मैं दो ग़ज़ जमीन तक सिमट जाऊँगा

बिन पंख ही परिंदो सी ऊँची उड़ान है मेरी

तो क्या जो मैं ख़ाक का एक ढेर बन जाऊँगा

आगे बढ़ते जाना ही मेरे लक्ष्य की दिशा है

हाँ मैं इन्सान हूँ।


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