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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Abstract Inspirational

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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Abstract Inspirational

हां जी हां , पुरुष हूं मैं

हां जी हां , पुरुष हूं मैं

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हां जी हां मैं पुरुष हूं।

त्याग समर्पण सहचर्य और आस्था का 

जीता जागता स्तम्भ हूं।

हां जी हां मैं पुरुष हूं।

जनक हूं भ्राता हूं सखा हूं

जीवन प्रदाता हूँ खूबसूरत नहीं स्मार्ट, मॉड्यूल हूं

हां जी हां मैं पुरुष हूं।

सुबह का अलार्म क्लॉक हूं

रिमाइंडर हूँ, अकेले बच्चों का ही नहीं 

सम्पूर्ण घर का साया हूं 

पत्नी का तो में सरमाया हूं।

हां जी हां मैं पुरुष हूं


परिवार का डॉ हूं, 

किचन का स्टोर कीपर 

आणि पूरक हूं। 

काम करने में गर्दभारूढ़ा हूं 

अपने बच्चों

का तो में टेडी बीयर हूं।

हां जी हां मैं पुरुष हूं।


सर्दियों में जब मस्ती से सब रजाई

में होते हैं,

मेरा शरीर तब परिवार के 

रोटी कपड़ा मकान 

के खर्च पूरे करने को 

बरसती बारिश ठिठुरती 

सर्दी में घर से बाहर भटकता है

आंखें मन व दिल 

मगर रहता है हर वक्त

घर की सुरक्षा की चिंता में 

घर का परमानेंट लाइफ टाइम बीमा हूं मैं 

हां जी हां पुरुष हूं मैं।


24 hrs पूरे सप्ताह 365दिन  एटीएम हूं मैं 

बच्चों की शिक्षा का प्रभार हूं मैं

पत्नी के सुहाग का तो सीधा 2 ही 

मंगल आधार हूं मैं

हां जी हां पुरुष हूं मैं 

परिवार की नींव हूँ खम्बों व् छत की मज़बूती हूं 

जमीन में धंसा नींव में छुपा पत्थर हूं 

 एक मजबूत कल्पवृक्ष हूं मैं 

कभी बहुत नरम 

कभी बहुत सख्त हूं मैं 

क्योंकि संस्कारों के लिए आश्वस्त हूँ मैं 

हां जी हां पुरुष हूं मैं।


पत्नी का छाता हूं भाई का 

कॅरियर हूं मैं, पिता का

गौरव हूं माँ का संस्कार हूं

भाई हूं, बेटा हूं पति हूं तात हूं

इन सब पर होने घात की ढाल हूँ 

हां जी हां मैं ही वो पुरुष जात हूं।

फिर भी अधूरा है जीवन मेरा

न जायका पूरा है ना खप्पर पूरा है 

मेरा क्या है जो भी है सब अधूरा है। 

सभी विषयों में मैं अधूरा सा एक वृत्तांत हूं 

इतना सब होकर भी कितना शांत हूं।। 

हां जी हां मैं पुरुष हूं।।


जितने भी काम करता हूँ 

और जो कमाई मिलती है मुझको

वो सब पत्नी के रख रखाव टूट फूट 

बच्ची बच्चों, माता पिता, बहन 

भाई के लिए खर्च होती है। 

मेरी तो न कोई जेब खर्ची होती है 

न कोई रिटायरमेंट 

ना कोई पेंशन ना छुट्टी ना वेतन भत्ता 

फिर भी सारे

काम खुशी ख़ुशी करता हुआ 

सब कुछ ख़र्चता रहता हूं। 

क्योंकि परिवार का एक अकेला

मैं ही तो पालनहार हूं।। 

हां जी हां मैं पुरुष होने के साथ साथ 

इन सबका सामाजिक देनदार भी हूं।।


हास्य रस का किरदार हूं

प्रेम की कविता का श्रृंगार हूं

भीष्म ही मैं हूं और कृष्ण भी मैं ही हूँ।। 

देखिये मैं ही तो सम्पूर्ण जगत का प्यार हूं, 

खूबसूरत नहीं न सही लेकिन एक 

स्मार्ट मॉडयूल व् सम्पूर्ण अवतार हूँ।। 

क्यूँ की मैं पुरुष हूं

बोला तो भाई।। 

हां जी हां मैं पुरुष हूं

हां जी हां मैं पुरुष हूं



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