हाँ! अब मैं प्रवासी हूँ!
हाँ! अब मैं प्रवासी हूँ!
हाँ मैं प्रवासी हूँ
देश के एक कोने में रहता,
इसी देश का वासी हूँ
हाँ मैं प्रवासी हूँ
साफ सुंदर गांव था,
धन का बना तनाव था,
चमकीला मुख-मंडल था,
मैं रहता नगें पाव था
चमक पड़ गई धूमिल अब,
मैं छोड़ चुका अपना काशी हूँ
हाँ अब मैं प्रवासी हूँ
समझौतें रोज किये,
सुख की रोटी कपड़ों के खातिर,
ढंककर, नंगी करती हैं,
ये शहरें हैं, बड़ी ही शातिर
पर मैं शहरों में उजियारा भरता,
जलते दीये का बाती हूँ
हाँ अब मैं प्रवासी हूँ
जब मैं नहीं था फूटी कौड़ी कमाता,
बिन मोल के सब अन्न, फल था खाता,
अब हाथ में कौड़ी है,
फिर भी दाल-चावल से हूँ काम चलता,
मैं फोकट था न लेन-देन,
अब कर्जों में बैठा थाती हूँ
हाँ अब मैं प्रवासी हूँ।