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Neeraj pal

Inspirational

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Neeraj pal

Inspirational

गुरू एक सहायक।

गुरू एक सहायक।

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मानुष तन देकर तुमने, परम अनुग्रह मुझ पर कर दीना।

मूढ़मति बन जीवन काटा, पाप गठरी सिर पर धर लीना।।


जीवन की हर एक सांस तेरी, कहता फिरता मेरी-मेरी।

जो भी मुख से तुमको भजते, आत्मानुभूति वह हैं करते।।


पाप-पुण्य की भाषा न जानी, करता रहा नित अपनी मनमानी।

संचित कर्मों से भाग्य उपजता, सुख-शांति की चाह न करता।।


जीवन का असली ध्येय न जाना, आत्म स्वार्थ का जामा पहना।

नित देखत औरन को दोषा, भूल बैठा आपन संतोषा।।


बिगड़े भाव सुधर न पाते, भव-सागर बीच पैर लड़खड़ाते।

मुझ अनाथ का तुम एक सहारा, सूझत अब न कोई हमारा।।


करुणा सिन्धु तुम कृपा तो कीजै, आत्म-

शांति का वर तो दीजै।।


हार गया हूं अपने जीवन से, खैर-खबर अब मेरी तो लीजै।।


चाहत नहीं कुछ और पाने की, राह देखत तुम्हरे आने की।

"नीरज" के गुरु एक सहायक, फिकर नहीं अब लाज जाने की।।


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