" गुरुजी समाधिस्थ "
" गुरुजी समाधिस्थ "
गुरूजी नेअलसुबहअपने शिष्यों को कहा।
कि मुझेआज ही सुबहअमृत वैला चौघड़िया मुहूर्त में
ईश्वर के घर लौटना है।
शिष्यों ने परम्परानुसार
जल्दी जल्दी में समाधिस्थल तैयार किया।
गुरूजी ने हिन्दू संंतआश्रमों कि भारतीय संस्कृति
कि भांतिअपनेआश्रम में पहले से उचित जगह पर
समाधिस्थल तय कर रखा था।
गुरुजी नेअपने ऐलान केअनुसार सही समयानुसार
सुबह के सात बजेअमृत चौघड़िया
शुभ मुहूर्त मेंअपनी मर्ज़ी इच्छा से शरीर त्याग दिया।
गुरूजी केअपनी मर्ज़ी से तय समय पर शरीर त्याग
करने कि ख़बर ग्रामीण क्षेत्र में आग कि तरह फ़ैल
गई।
इसलिए बहुत ही भारी तादाद में श्रद्धालु जन समुदाय
गुरुजी कि समाधिस्थल परअंतिम दर्शन को उमड़ पड़ा था।
गुरूजी के लाखों ग्रामीण शहरी
अनुयायियों लोगों कि
मौजूदगी में समाधि लगाईं गई।
गुरूजी के संतआश्रम निवास से समाधिस्थल तक
अंतिम विदाई में भारी जनसैलाब उमड़ा।
लाखों स्त्री पुरुषों बच्चों ने भजन कीर्तन इत्यादि करते हुए।
महान महापुरुष पहुंचवान महात्मा संतश्री जी को
गुलालअबीर उड़ाके पुष्प वर्षा करकेअंतिम विदाई दी।
गुरू जी का समाधिस्थल जय कारों से गुंजायमान हो
उठा था।
बैंड बाजा सहित धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करते हुए।
सभी भक्त जन मिलकर गुरुजी के जय कारे लगा रहे थें।
ऐसे महान महापुरुषों साधु संन्तों को सत सत नमन।