गुरु पूर्णिमा वंदन
गुरु पूर्णिमा वंदन
गुरु पूर्णिमा वंदन
पहले गुरु हैं मां और बाप,
जिन्होंने सिखाया जीने का ताप।
जीवन के गुण, संस्कार दिए,
हर दुख-सुख को स्वीकार दिए।
उन्होंने जीवन का अर्थ सिखाया,
हर राह में सहारा बनाया।
उनके चरणों में वंदन हमारा,
धन्य हुआ जीवन ये सारा।
दूसरे गुरु हैं भाई-बहन,
और नन्हें-मुन्ने प्यारे बचपन।
जिन्होंने जीवन रंगीन बनाया,
हर पल को सजीव सिखाया।
उनसे सीखा हँसना-गाना,
साथ निभाना, दुख को मिटाना।
फिर आए शिक्षण के वे दीपक,
गुरुजन, जिनसे मिटा अज्ञान का विपक।
ज्ञान की जोत जलाई जिन्होंने,
जीवन को राह दिखाई जिन्होंने।
हाथ जोड़ नमन है उनको,
जिन्होंने मोड़ दिया जीवन को।
ससुराल में आई जब नई डगर,
सास बनीं गुरु, बनीं मां-सी नगर।
सिखाया आत्मबल, धैर्य सिखाया,
हर रिश्ते का मर्म बतलाया।
उनको भी है वंदन हमारा,
जिनसे मिला स्नेह अपारा।
धर्मगुरु, गुरु महाराज हमारे,
जिनसे जुड़े भाव सारे के सारे।
जीवन को जो आध्यात्मिक बनाएं,
सच्चे मार्ग पर हमें चलाएं।
गुरु पूर्णिमा पर शत-शत नमन,
उन चरणों में है जीवन समर्पण।
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय?
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।
