गुरु प्रेम।
गुरु प्रेम।
प्रेम प्याला जिसने है पाया, जीवन सुगम उसका बन जाये।
सच्चा आनंद प्रेम में ही होता, क्यों नफरत को गले लगाये।।
प्रभु भी हैं प्रेम के वश में, मीरा ने प्रत्यक्ष दर्शन हैं पाये।
सद्गुण हृदय उसका बन जाता, प्रेम आवेश में जो भी आये।।
आकर्षण शक्ति प्रेम में है इतनी, शबरी निकट श्री राम जी आये।
श्रद्धा भक्ति भी फीकी पड़ती, जूठे बेर प्रभु ने ही खाये।।
प्रेम करो इतना तुम सबको, वह तेरा ही बन जाये।
हृदय निर्मल पल भर में होता, सब तेरे ही गुण गायें।।
सच्चा प्रेम उसी को है मिलता, जो मल विकारों को दूर भगाये।
प्रेम रस से हृदय तब होगा, प्रभु मय सब उसको दिखलाये।।
सच्ची सुंदरता तन से नहीं होती, क्यों इतना तू इठलाये।
प्रेम सुंदरता मन से है होती, प्रभु से जो मिलन कराये।।
समर्पण योग प्रेम से ही होता, "गीता" का जो रहस्य बतलाये।
"नीरज" तो "गुरु प्रेम" का प्यासा, रह- रह उनकी याद सताये।।
