गुरु महिमा से
गुरु महिमा से
मन की पीड़ा धो लेता हूँ, अन्तस को चमका लेता हूँ ।
पा करके आशीष तुम्हारा, गुरुवर मैं सुसता लेता हूँ ।।
स्वप्न सुनहरा जीवन अपना, कंचन मोती सा चमकीला,
इसी फेर में गुरु महिमा से, दुख भी गले लगा लेता हूँ ।
चंचल मन के लिए दिए थे, कितने ही उपचार गुरु ने,
आज भटकता हूँ मैं जब भी, उनको ही दुहरा लेता हूँ ।
चुपके चुपके रीत गए हैं, आडम्बर के शूल हृदय से,
लेकिन संस्कृति के फूलों से, जीवन को महका लेता हूँ ।
