गुलदस्ता हूं, कुछ कहता हूं मैं
गुलदस्ता हूं, कुछ कहता हूं मैं
गुलदस्ता हूँ , आज कुछ कहता हूँ मैं।
काले पीले हरे नीले,
कुछ सादे, कुछ चमकीले,
जाने कितने फूलों को,
बिन देखे रंग और जात पात,
अपने में कर एक कसता हूँ मैं।
गुलदस्ता हूँ मैं।
अपनी डाल से टूट कर,
आए जो अपनों से छूटकर,
उन महकते गुलों से,
माली के दस्तों से,
प्यार से संवर हंसता हूँ मैं।
गुलदस्ता हूँ मैं
अपनी खुशियाँ छोड़कर,
अपनी सांसों से मुंह मोड़ कर,
एक हाथ से दूजे तक पहुंचता,
उनके दिलों में महकता,
खुशियों का एक बस्ता हूँ मैं।
गुलदस्ता हूँ मैं।
आंखों में सपने खिलाता,
दिलों को दिलों से मिलाता,
ऐसे कई किस्से मैं सुनाता,
गमों को खुद में छुपाता,
तुम्हारे आगे जाने का रस्ता हूँ मैं।
गुलदस्ता हूँ मैं।
कुछ को लगता हूँ महंगा,
पर प्रेमी को प्रेयसी तक,
नेताओं को कुरसी तक,
गर मिल जाए मुकाम,
तो समझ लेना सस्ता हूँ मैं।
गुलदस्ता हूँ मैं।
अपनों के छूटने, दिलों के टूटने का,
मंजर भी देखा है मैंने,
एहसासों को लूटने का,
वो खंजर भी फ़ेंका है मैंने,
पर बेबस हूँ , सब सहता हूँ मैं।
गुलदस्ता हूँ , आज कुछ कहता हूँ मैं।