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Harsha Godbole

Abstract

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Harsha Godbole

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गुलाब की बिखरी पंखुड़ियां

गुलाब की बिखरी पंखुड़ियां

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आज सुबह यूहीं टहलते-टहलते, 

मेरी नज़र मेरे गुलाब के पौधों पर पड़ी।

कल जिसमें सुन्दर फूल थे खिले, 

आज चारों ओर पंखुड़ियां है बिखेरी।


देख इन्हे मेरा मन भर आया, 

कौन है जिसने पौधों को ठेस पहुंचाया।

इन कोमल- कोमल पंखुड़ियां को, 

अपने हाथों से है गिराया।


इन गिरी पंखुड़ियां को देखकर ऐसा लगा, 

जैसे किसी आशिक के दिल के, 

किसी ने हज़ारों टुकड़े कर डाले, 

एक बेवफा ने उस पर खंजर दे मारा।


क्या गुजरी होगी उस आशिक पर,

कितना रोया होगा, क्या कुछ सहा होगा, 

कैसे संभालेंगे वह अपने आपको 

कौन देगा सहारा उनकों अब।


यह सोच कर जी करता है 

बटोर लूँ सारी गुलाब की पंखुड़ियां को, 

फिर से सजा दूँ पौधों पर,

और जोड़ दूँ आशिक के दिल को।


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