जिंदगी का सफर
जिंदगी का सफर
यूहीं जिंदगी के सफर में चलते चलते,
बहुत से ऊँचे नीचे डगर है मिलते।
इस डगर पर मैं कभी-कभी,
चलते चलते थक सा जाता।
इन पथरीली पग डंडियों में,
कहीं फूल, कहीं काँटों से मेरे पैर
जख्मो से भर जाते, थक जाते
कुछ देर मैं रूक कर फिर चल पड़ता।
नीले आसमान को निहारता,
कभी रेत के टीलों में पानी की बूँद खोजता।
पक्षियों की गूंज में,
अपने सारे गम भूल सा जाता।
यू हीं जिंदगी के सफर में,
कभी अंजाने तो कभी जाने पहचाने
चेहरे से मुलाकात हो जाती,
इन मुलाकातों में अपनापन खोजते।
कुछ पल हँसते खेलते,
कुछ, गम के साये में
सिमट कर रह जाते।
पल पल इस दौड़ती जिंदगी में,
खुश रहने का दिखावा करते।
सारे मर्ज दवा से दूर नहीं होते,
इन्हें अपनों का सहारा चाहिए।
इस जिंदगी के सफर में
मैं चलते चलते थक चुका हूँ।