गुलाब इश्क़ का
गुलाब इश्क़ का
खिलाना चाहा, जब भी गुलाब इश्क़ का
ज़माना इस कदर उभरकर आता है,
फूल ले जाता है, अनजान कोई
महज़ कांटा ही हिस्से आता है।
रूबरू हुआ अब, तो पता चला
बदल गया, कमबख्त ये ज़माना
हमने तो सुना था, फ़ूल बोओ तो
यकीनन, फूल ही उगकर आता है।
खिलाना चाहा, जब भी गुलाब इश्क़ का
ज़माना इस कदर उभरकर आता है,
फूल ले जाता है, अनजान कोई
महज़ कांटा ही हिस्से आता है।
रूबरू हुआ अब, तो पता चला
बदल गया, कमबख्त ये ज़माना
हमने तो सुना था, फ़ूल बोओ तो
यकीनन, फूल ही उगकर आता है।