मैं और मेरा मन
मैं और मेरा मन
आज जब मैं शांत हूँ
मन मेरा मुझसे कहता है
क्यों तू इतना शांत है
क्यों चुप चुप सा रहता है?
क्या राज है इस खामोशी का
जो तू अपने अंदर रखता है
क्यों चुप्पी का ये रंग सदा
तेरे चेहरे पर उभरता है?
हर वक्त देखा हैं मैने
तू कागज से बतियाता है
इतना खामोश रहकर भी
काफी कुछ कह जाता है!
मैने कहा तू समझा ही नहीं
इस खामोशी में शौर भी हैं
तूने गौर से देखा ही कहा
इस सन्नाटे में कुछ और भी हैं!
मैं और मेरी ये खामोशी
कुछ ऐसे पेश आते हैं
दिल ये अल्फाज सभी
कागज से बतियाते हैं!
जब बाते दिल छू जाती हैं
कलम मेरी जबां बन जाती है
दिल के ये अल्फाज सभी
कागज पर कुर्बान हो जाते हैं!