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Akash Yadav

Abstract

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Akash Yadav

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शरबत इश्क़ वाला

शरबत इश्क़ वाला

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मुझको तू ऐसा पुष्प बना दे 

तुझे देखकर खिल जाऊँ मैं


कुछ राज़ थोड़े बतला दे 

खुद से तो मिल जाऊँ मैं


करता रहे समाज़ ये मनमानी

इसे सुनकर क्यों मुरझाऊँ मैं


पी कर शरबत थोड़ा इश्क़ वाला 

बस तुझमें ही घुल जाऊँ मैं।


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