आज का समाज
आज का समाज
ये आज का समाज़ भी
कुछ समझ ही नहीं आता है
सुनाता है खुद ही किस्से इश्क़ के
पल भर में फिर क्यों बदल जाता है।
कभी दिखाता ये धूप सुनहरी
अभी कोहरा सा बन आता है
यहाँ इश्क़ है एक अधूरे ख्वाब सा
जो आँख खुले तो टूट जाता है।
ये आज का समाज़ भी
कुछ समझ ही नहीं आता है
सुनाता है खुद ही किस्से इश्क़ के
पल भर में फिर क्यों बदल जाता है।
कभी दिखाता ये धूप सुनहरी
अभी कोहरा सा बन आता है
यहाँ इश्क़ है एक अधूरे ख्वाब सा
जो आँख खुले तो टूट जाता है।