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Govind Narayan Sharma

Romance

4  

Govind Narayan Sharma

Romance

गुफ़्तगू

गुफ़्तगू

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आजकल वो मुझसे खुलकर गुफ़्तगू करती नहीं,

देखती अपलक यूँ जैसे कभी पहले देखा नहीं !


वो बे-वफा आएगी कभी ख्वाबों ख्यालो में, 

कह दूँगा मैं भी साफ ठीक से पहचानता नहीं ! 


दिल को समझाया हजार बार बचो उल्फ़त से,

लेकिन मन मौजी बावरा कहा मानता हैं कि नहीं ! 


आंखों में सुरूर मेरा होंठों पर मन्द मुस्कान,

वो भले मुझे दिल मे न रखे कोई मसला नहीं !


टुनिया मुझ पर तंज कसती हैं तो कसती रहे, 

मैं पागलों के गुनाह का बुरा कभी मानता नहीं ! 


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