गुफ़्तगू
गुफ़्तगू
आजकल वो मुझसे खुलकर गुफ़्तगू करती नहीं,
देखती अपलक यूँ जैसे कभी पहले देखा नहीं !
वो बे-वफा आएगी कभी ख्वाबों ख्यालो में,
कह दूँगा मैं भी साफ ठीक से पहचानता नहीं !
दिल को समझाया हजार बार बचो उल्फ़त से,
लेकिन मन मौजी बावरा कहा मानता हैं कि नहीं !
आंखों में सुरूर मेरा होंठों पर मन्द मुस्कान,
वो भले मुझे दिल मे न रखे कोई मसला नहीं !
टुनिया मुझ पर तंज कसती हैं तो कसती रहे,
मैं पागलों के गुनाह का बुरा कभी मानता नहीं !