गर्मी की दोपहर
गर्मी की दोपहर
तेज गर्मी की भरी दोपहर वो थी
सूरज अपने चरम पर था
गरम लू चल रही थी ऐसे
गरम गरम थपेड़े मारे कोई जैसे
ऐसा कुछ महसूस हुआ ना वहां
गई थी शायद मैं जहां।
राहें थी गर्म, रास्ते थे गर्म
छायादार पेड़ खुद से ढके उन रास्तों को
जिनके तले बैठकर कुछ लोग ताश खेले थे
कुछ आराम फरमा रहे थे
कुछ बच्चे पढ़ रहे थे
कुछ अपनी रोजी रोटी कमा रहे थे।
उन पेड़ो तले
जो सुकून मिले
सो शांति मिले
वो कहीं और कहां
अनजान सी राहें थी
जानी पहचानी हो गई थी।
उन पेड़ो ने अपना बना लिया
अपनी छाया के नीचे सुला लिया
एक गांव की गर्मी की दोपहर थी वो
एक गांव की गर्मी की दोपहर थी वो !