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Nalanda Satish

Tragedy

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Nalanda Satish

Tragedy

गरीबी

गरीबी

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गरीब है तो अपराधी,अजीब समीकरण जोडती है गरीबी

बेकसूर के सिर पर कत्ल का आरोप,लाचारी मे कबूल करती है गरीबी


कातिल का पता नही होता मुफलिस है गरीबी

बेहोशी मे ही सही मगर पीस रही है गरीबी 


सत्ता खा रही है अचार,देखो बेबस हैं गरीबी

जिन्दा हो तो जिन्दा रहने का सबूत मांगती है गरीबी


नाचती है सत्ता सत्ताधिशो के कोठे पर गुमनाम है गरीबी

पेट मे नृत्य करती भूख बेकार मे तवायफ बनती है गरीबी


कब किसे कौन उठा ले जाये और कब किसे घोषित कर दे कातिल,गुनाहगार है गरीबी

खामोशी के हादसो से तन्हाई खुन के आँसुओ मे डुबती है गरीबी


घुंघरुओं की ताल पर छनक छनक नाचती है गरीबी

नही कोई सुरक्षित बली चढ़ रही है सत्ता की गरीबी


सशक्तीकरण हो रहा है सत्ता का लाशो के ढेर पर सज रही है गरीबी

नित नये आयाम बन रहे हैं 'नालंदा ' टीलो का रुप धर रही है गरीबी!


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