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Manju Rai

Abstract Inspirational

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Manju Rai

Abstract Inspirational

गृहणी - यम संवाद

गृहणी - यम संवाद

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हे ! गृहणी उठो चलो हमारे साथ, 

इस धरा पर पूर्ण हुआ तुम्हारा वासI 


चौंक कर नारी बोली प्रभु!,

यहाँ पूर्ण न हुए अभी मेरे काजI 

कैसे चलूँ मैं अभी मेरे बिन ,

इस घर में होता न एक भी काजI 


हे ? पुत्री तू है कितनी भोली,

आ मैं तुझे दिखाऊँI 

इस नश्वर संसार के मनुज ,

के सत्य व्यवहार समझाऊँI 


रोज की भाँती पति ने मुझे जगाया,

प्रेम से मेरा शीश सहलायाI 

उठो प्रिये बच्चे तुम्हें पुकार रहे ,

देखो दिन चढ़ आयाI 


यूँ तुम इतनी देर सोती नहीं,

सपनों ने क्या तुम्हें इतना ललचायाI 

कौन से जग में तुम इतना खोई,

किस बात ने तुम्हें इतना भरमायाI 


बच्चे बिलख रहे माँ की ममता को,

चाहूँ उठ गले लगा लूँI 

अश्रु उनके पोंछ कर 

उन्हें पुचकार लूँI 


कितनी मैं भाग्यशाली ,

सब कितना करते प्रेम मुझेI 

आज कितने लाड से भर नैनों में ,

नीर सजा रहे मुझेI 


अंतिम बिदाई है इस घर से,

ही नहीं संसार सेI 

अपनो को रोता - बिलखता देख,

छोड़ चली मैं पहुँची मरघट पेI 


पर ये क्या ? अभी बीते थे ,

बस दस दिन बच्चे मुझे भूल गएI 

जो हर दम माँ - माँ की रट लगाते,

अपना काम करना सीख गएI 


पति ऑफिस जाने लगे ,

दिनचर्या स्वयं निभाने लगेI 

मुश्किल कितना होता है नारी बिन,

घर संसार बात मन में गुनने लगेI 


आज अंतिम बिदाई है ,

आँसू अपनों के रुक रहे नहींI 

प्रभु आप ने मिथ्या भाषण किया ,

मेरे बिना मेरे पति - बच्चे यूँ लगता रहेंगे नहींI 


पुत्री मैं मिथ्या भाषण करता नहीं,

तू भोली पवित्र आत्मा जग व्यवहार देख नैनों सेI 

देख जिस पति प्रेम पर था तुझे गुमान,

अन्य नारी को ब्याहता बना निकाल दिया हृदय कोनों सेI 


बच्चे ही तुझे न भूले,

तुझ सा समर्पित प्रेम न पायेंगेI 

तू माँ थी औ रहेगी,

उर में वे तुझे सदा बसायेंगेI 


समझ गई सारा मैं सार,

ये रिश्ते बस हैं एक छलावाI 

मोह बस तन के रिश्तों से होता ,

साथी कोई न तेरा कर्म के अलावाI 



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