गर तुम न मिलते
गर तुम न मिलते


गर तुम न मिलते मुझे
तब भी चलती रहती साँस
पर उसमें
जीवन की लय न होती।
न होती प्रेम की सुगंध
धड़कता रहता दिल यूँ ही
खामोश ही होते मगर
वो सारे सुर-ताल
जो संगीत भर देते हैं मन में।
तुम न मिलते गर
चलती रहती तब भी कलम
पर लिखे हुए शब्द तब
बेजान से छपे रहते कागज़ के
सीनों पर।
धड़कते नहीं भाव और
प्रीत के पल उनमें
न रुमानियत की सरसराहट होती
न दस्तक दे पाते किसी के दिल पर।
तुम न मिलते गर मुझे
रिश्ते तब भी निभते रहते
बहुत से
मैं बेटी, बहन, माँ होती
और भी बहुत कुछ होती
सबकुछ होती,
सबके लिए होती
बस न हो पाती तो
अपने लिए कुछ न हो पाती
तुमने ही मिलवाया
अपनी "मैं" से मुझे।
तुम न मिलते गर मुझे
तो सच में
मैं कभी औरत नहीं हो पाती।