गोविन्द हरे मुरारी
गोविन्द हरे मुरारी


छप्पन भोग की थाल है सजी,
नन्द लाल के जन्म की धूम चारो ओर है मची,
बाजे ढोल नगाड़े और शहनाई,
चारो ओर कृष्णोत्सव की धूम है छाई,
गोकुल का छलिया,
युद्ध महाभारत रच दिया,
प्रेम का सार संसार को सीखाया,
धर्म का अर्थ प्राणी जन को समझाया,
छप्पन भोग की थाल है सजी,
नन्द लाल के जन्म की धूम चारो ओर है मची,
आई घोर विपदा जब गोकुल पर,
सब को बचाया गोवर्धन पर्वत को उठा कर,
द्रोपदी का उपहास जब भरी सभा ने उड़ाया,
गोविन्द ने द्रोपदी की लाज को बचाया,
मोह ने बांध दिए जब अर्जुन के हाथ,
कृष्ण ने उस वक़्त थामा अर्जुन का हाथ,
छप्पन भोग की थाल है सजी,
नन्द लाल के जन्म की धूम चारो ओर है मची,
कुरूक्षेत्र में गीता का पाठ सुनाया,
रण छोड़ कर वो रनछोर है कहलाया,
मधुबन में रास खेल कर,
मोह में बांध लिया बंसी की धुन को बजा कर,
मीरा बन गई जोगन हरी नाम जप कर,
राधा हो गई बावरी कृष्ण से प्रीत लगा कर,
छप्पन भोग की थाल है सजी,
नन्द लाल के जन्म की धूम चारो ओर है मची,
जग के बंधन भूल सुदामा को गले से लगाया,
कृष्ण ने आसुओं से सुदामा के चरणों को भिगोया,
पीताम्बरी कान्हा के तन सोहे,
सावरी सूरतिया हर मन को मोह ले,
तोड़ के मटकी गोपियो को सताया,
जग की खुशी को मैंने हरी चरणों में पाया,
छप्पन भोग की थाल है सजी,
नन्द लाल के जन्म की धूम चारो ओर है मची,
देव मुनि जन सब इनको पूजे,
गोविन्द की बंसी की धुन चारो ओर है गूंजे,
ग्वालों के संग गाय चराए,
चुरा चुरा कर माखन मिश्री वो खाए,
यूं श्रृंगार किया है कहीं नजर ना लग जाए,
जब से चड़ा कृष्ण रंग कोई रंग ना मन को भाए।