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Dr Pragya Kaushik

Abstract Inspirational

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Dr Pragya Kaushik

Abstract Inspirational

गणित जिन्दगी का

गणित जिन्दगी का

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गणित जिन्दगी का 

समझ कुछ यूं आया हमें

जमा क्या ,घटा क्या

गुणा- भाग सब यहीं घटा।


अंकों का दौड़ना,

जिन्दगी के पैमाने तले,

फैक्टरर्स भी बदलते रहे

परिस्थितियों के मायनों के कहे।


शताब्दी और अर्ध शतक 

युग बनते गए ,

जमा आंकड़े भी पीछे न रहे,

आकलन भी उनका जिन्दगी 

को 'औसत अजब देता रहा। 


कठिन रहा या आसान बना

पर ऐलगोरिथम कब 

पीछा करता रहा 

ये पता भी कभी न चला ।


परिधि व्याधियों -उपलब्धियों का

ग्रेड अपना बनाती रही,

धुरी कब अपना बिन्दु बदल गई

ये हिसाब कुछ अछूता रहा।


खुशी से खुशी और

प्यार से प्यार का गुणा -भाग,

भागम- भाग की जिन्दगी का 

अहम हिस्सा हमेशा रहा।

 

कला और विज्ञान का गणित को 

आधार जो अद्भुत मिला ,

तो उलझनों के न सुलझने 

का वहम् भी, डिफ्रैन्स से छू हो गया।



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