गणित जिन्दगी का
गणित जिन्दगी का
गणित जिन्दगी का
समझ कुछ यूं आया हमें
जमा क्या ,घटा क्या
गुणा- भाग सब यहीं घटा।
अंकों का दौड़ना,
जिन्दगी के पैमाने तले,
फैक्टरर्स भी बदलते रहे
परिस्थितियों के मायनों के कहे।
शताब्दी और अर्ध शतक
युग बनते गए ,
जमा आंकड़े भी पीछे न रहे,
आकलन भी उनका जिन्दगी
को 'औसत अजब देता रहा।
कठिन रहा या आसान बना
पर ऐलगोरिथम कब
पीछा करता रहा
ये पता भी कभी न चला ।
परिधि व्याधियों -उपलब्धियों का
ग्रेड अपना बनाती रही,
धुरी कब अपना बिन्दु बदल गई
ये हिसाब कुछ अछूता रहा।
खुशी से खुशी और
प्यार से प्यार का गुणा -भाग,
भागम- भाग की जिन्दगी का
अहम हिस्सा हमेशा रहा।
कला और विज्ञान का गणित को
आधार जो अद्भुत मिला ,
तो उलझनों के न सुलझने
का वहम् भी, डिफ्रैन्स से छू हो गया।