गलत उपमा
गलत उपमा
सुनकर उपमा तेरी खुद से,
चाँद का पारा चढ़ गया
तू है उसके नख के जैसी
वो मुझसे दावा कर गया
बोला मुझे है साबित है करना
तू उससे सुंदर है वरना
फिर तारीफ न कर पाऊँगा
मुझसे वादा कर गया
वहीं डाल पर बैठी कोयल
अब मुझको गरियाती है
कैसे तेरी कर्कश वाणी
मुझे उसकी याद आती है?
वो बोली मैं ना गाऊँगी,
तेरी बगिया में ना आऊँगी
जो मैंने दोहराया ये सब
फिर माफ तुझे न कर पाऊँगी
वहीं चहकते हिरनी आई
अपनी आँखें मुझको दिखलाई
पूछी बोल क्या है इतनी गहरी
क्या उसने खुद में कुएं है खुदवाई
अगर जो उसकी छिछली
गहराई नकली जो निकली
अपने सिंह से तोडूंगी मैं
फिर तेरी हड्डी पसली
पीछे पीछे मोरनी आई
देती दाता की मुझे दुहाई
जब से उसकी चाल को कोसा
तब उसकी हुई हँसाई
क्या है उसकी चाल खराब
बस दूं मैं उसे यही जवाब
जो मैं हूँ सच कह नहीं पाता,
क्यूँ मैं उनका नाम हँसाता
लेकिन नाग बहुत ही खुश था
दिखा ना मुझसे जरा भी गुस्सा
जो इतने उसको मिले विकल्प
पतिव्रत का क्यूँ ले संकल्प
इतने में नागिन लहराई
फन निकाल कर ली अंगड़ाई
जो फिर उसका नाम उछाला
ना होगी एक भी सुनवाई
अब मुझे भी कुछ कहना है
सदा सत्य संग रहना है
करके तेरी झूठी तारीफ
मैं बहुत कुछ लिया है सीख
तू बस तुझ जैसी दिखती है
सादी है बिलकुल फीकी है
ना तेरी है मिसाल यहाँ,
जैसी है पर अच्छी लगती है।