गज़ल
गज़ल
कब तलक तुमसे मिलना होगा, बरसों से इंतजार था मुझको
ऐसा लगता कल ही मिले थे, हम प्यासे ही रह गए
बीते लम्हों को याद कर, अरमान संजोये बैठा था कब से
पहुँच न सका तेरे दर पर, तकदीर के मारे ही रह गए
दूर रहकर भी तुम तो हर घड़ी, बरसाते रहे फैज़ इस कदर
पा ना सका उस अमृत को, हम खाली ही रह गए
बहुत मुश्किल है छिपाना, तुम्हारी नूरानी सूरत को
दिल का आईना साफ ना था, हम अंधे ही रह गए
मुहब्बत की खुमारी में, कितनों की तकदीर ही बन गई
विषय-वासना के चक्कर में, हम फँस कर ही रह गए
कैसे भूलूँ उस नजारे को, लुटाते थे अहैतुकी कृपा को
तुम तो करते सब पर इनायत, हम तो खुदगर्ज ही रह गए
कभी तो रहमों करम होगा, इंतजार की आदत सी हो गई
"नीरज" खाली कर दे अंतर्मन को, वही तेरे मीत हो गए
