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Rishabh Tomar

Abstract Romance Tragedy

4.0  

Rishabh Tomar

Abstract Romance Tragedy

गजल

गजल

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उसके सिवा मेरा कोई किनारा नहीं रहा

जो भी रहा पराया रहा हमारा नहीं रहा


सर्दी के बाद गर्मी और गर्मी के बाद बारिश

यूँ ही जिंदगी में इक सा नजारा नहीं रहा


उसके ही संग गजलें मेरी वीरान हो गई

हर से'र गमजदा कोई भी प्यारा नहीं रहा


हिन्दू कही है मुस्लिम छोटा तो कही बड़ा है

भारत में मोहब्बतों का वो शरारा नहीं बचा


धृतराष्ट्र की है सत्ता, गुरु, भीष्म मौन है सब

बच जाये आबरू कोई नजारा नहीं बचा


गांधी के तीन बंदर जग हो गया है सारा

सच्चाई का यहाँ तो कोई सहारा नहीं बचा


जब चाँद छिप गया और बिजली भी चली गई

घर मे है अंधेरा शमां को आरा नहीं रहा


मेरा चाँद दहस्तो में है आकाश उदसियों में

अब बदल गया मुकद्दर वो सितारा नहीं बचा


अल्फाज़ जुदा है सारे ऋषभ शायरी से मेरी

भावों का वो समंदर मेरा यारा नहीं बचा



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