ग़ज़ल
ग़ज़ल
पैर ज़ख्मी हौसले बहुत थे।
रोकता कौ'न फासले बहुत थे।।
जिरह करते मुवक्किल चल बसा।
मानता कौ'न फैसले बहुत थे।।
मां थपकियां देकर सुला मुझे।
नींद न मिली काफ़िले बहुत थे।।
डूबती कश्ती बचा ना सका।
तैर न सका जलजले बहुत थे।।
'साहिल' वहीं था पकड़ ना सका।
पास आकर फासले बहुत थे।।
