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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Romance Others

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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Romance Others

गजल: मेरे दिल से...!

गजल: मेरे दिल से...!

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मेरी जान मुझसे खफा हो जाती है,

जाने आंखों से क्या कह जाती है।


चुप से रहते हैं लब मेरे हर घड़ी,

पर तड़प दिल की सब बयां हो जाती है।


रूठने की उसे आदत हो गई,

हर दफा यूं ही बेवफा हो जाती है।


चांदनी रात में जब भी सोचूं उसे,

चुपके-चुपके जाने क्यों घटा बरस जाती है।


मेरी चाहत का एहसास भी है उसे,

फिर भी वो दूर बेवजह हो जाती है।


और इस धड़कन में बसी है उसकी सदा,

हर सांस में बस वो दुआ हो जाती है।


दिल के जख्मों को हंस के सहता रहा,

वो हर बात पर जाने खफा हो जाती है।


मैं जो कह दूं तो इल्ज़ाम मेरे ही सर,

खामोशी में भी गिला हो जाती है।


बेवजह दूरियों की वजह क्या कहूं,

बस मोहब्बत भी अब सजा हो जाती है।


मेरी जान मुझसे खफा हो जाती है,

जाने आंखों से क्या कह जाती है।


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