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संदीप सिंधवाल

Classics

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संदीप सिंधवाल

Classics

ग़ज़ल - मेरे अजीज

ग़ज़ल - मेरे अजीज

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तोहफा मिला प्यार का इक नायाब सा

फिजा तक बिखरा वजूद आफताब सा।


अवसरों का तो आना जाना लगा रहेगा

आप चांद अंधेरे के, मैं साया मेहताब सा।


इक मुशायरों में शामिल है नाम अपना

तुम उसी नुक्कड़ में दूर खड़े शहजाद सा।


हर मुबारक-ए-वाद में महक गुलस्तां की

मुख्तसर सा नहीं, ये लफ्ज़ है नवाज़ सा।


हद में रख ए सिंधवाल अपने गुरूर को

मुकम्मल अभी कहां, यारों का आगाज़ सा।


ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
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