गजल को ले चलो अब
गजल को ले चलो अब
गजल को ले चलो अब, उजड़े दयारों में।
लुत्फ उठा सके हर कोई, दर्दे बयारों में।।
लुत्फ वो भी उठाते हैं, जो दर्द में जीते हैं।
पंछी नभ को चूमते हैं, मौसम बहारों में।।
गजल को ले चलो अब,मंच की महफिल।
जहां गीत गाये संग में, तारें करे झिलमिल।।
सुन सुन गजल ठहाके लगे,हो जाये मस्त।
मधुर खुशी बिखर उठे, होली त्योहारों में।।
गजल को ले चलो अब,जाम मयखानों में।
जन्नत का नजारा दिखे, नशे की दीवारों में।।
खिल उठे रोम रोम फिर,स्वर्ग के झोंकों में।
चहुं ओर ले अंगड़ाई,चिलमन के नजारों में।।
गजल को ले चलो अब,दुल्हन के मंडप में।
बजे जहां संग शहनाई, डोली उठे कहारों में।।
दूल्हा-दुल्हन मंद मुस्कुराये, सखियां दे ताने।
हर मुख पर मुस्कान हो, तन झूमे खुमारों में।।
गजल को ले चलो अब, देश के त्योहारों में।
होली का उड़े गुलाल, मस्ती की फुहारों में।।
मिलकर मनाये खुशियां, शाम आई निराली।
मन मिलता उदास जब,नजर जाये मजारों में।।
गजल को ले चलों अब,अब दर्द के मारों में।
उदासी भी कम होगी, उन वक्त से हारों में।।
रो रोकर हो चुका है, युवाओं का बुरा हाल।
कुछ तो दवा काम करेगी, दो चार हजारों में।।
गजल को ले चलों अब, बालक बेचारों में।
आंचल भी छीन लिया, आग के अंगारों में।।
क्या क्या बदहाल हुआ, इन राजदुलारों का।
उजले मुखड़े कई मिलते, हीरे जवाहरों में।।
गजल को ले चलो अब, मंदिर व मीनारों में।
छन छन कर गजल आये, मंदिर किवाड़ों में।।
भक्त प्रसन्न हो जायेंगे, सुन सुनकर वो तराना।
नशा सा महकेगा दिल में, भक्ति की फुहारों में।।