***गजल ******इरादा मेरा**
***गजल ******इरादा मेरा**
नाम लेकर के बेख़ुदी में पुकारा मेरा
हो रहा चर्चा सरेआम तुम्हारा मेरा।
लोग करते रहे गुफ़्तगू अब बहक़ी-बहक़ी
कैसे हो राहे गुज़र में यूँ गुजारा मेरा।
इस जहाँ में रंग कई आज बहारों के है
हो मोहब्बत में वफ़ा साथ निभाना मेरा।
तुम बर्बादी का रोना अब ना रोया करो
फिर अश्कों से इन आँखों को यूँ भिगाना मेरा।
क्यूँ मेरी बातों को हरदम यूँ ही टालते रहे
जानते नहीं थे क्या तुम इरादा मेरा।
संग दरिया में तो डूबना कब आसान लगा
हँस के एक बार बोल दे है तू दीवाना मेरा।
इस जमी को थी जन्नत की ये ख्वाहिश कभी
"नीतू" हर ख्वाब मन से तू ही सजाना मेरा।
गिरह
दर्द हमने जो रखा हरेक ख़ुशी तुम को दी
उठ गया खून के रिश्तों से अक़ीदा मेरा।