मन में बहते झीलों को जब समुद्र समझा, तब अपने अंदर ख़ौफ़ का मंजर समझा मन में बहते झीलों को जब समुद्र समझा, तब अपने अंदर ख़ौफ़ का मंजर समझा
अब बस जिस्म ख़त्म हो और रुह को चैन आए, फिर ना अधेरा-उजाला चाहे और ना दिन-रात। अब बस जिस्म ख़त्म हो और रुह को चैन आए, फिर ना अधेरा-उजाला चाहे और ना दिन-रात।
इस जहाँ में रंग कई आज बहारों के है हो मोहब्बत में वफ़ा साथ निभाना मेरा। इस जहाँ में रंग कई आज बहारों के है हो मोहब्बत में वफ़ा साथ निभाना मेरा।