ग़ज़ल-दिखाई देता है
ग़ज़ल-दिखाई देता है
हर तरफ मुझे उजाला दिखाई देता है,
कभी चांद कभी साया दिखाई देता है।
कभी लगती है अपनी कभी बेगानी सी,
कमबख्त ये इश्क पराया दिखाई देता है।
भले मैं दूर हूं तुझसे तू मुझसे दूर है कितनी,
पर दिल से मुझे अपनाया दिखाई देता है।
मुसीबतों का अंधेरा कितना भी हो गहरा,
दूर से उम्मीदों का साया दिखाई देता है।
गम का माहौल भी हो चारों ओर अगर,
दूर खुशियों का परछाया दिखाई देता है।
चोट लगी हो कितनी भी गहरी मगर,
तेरी आंखों में प्यार दवा सा दिखाई देता है।
कितनी भी मिली हो तुझे हर रास्ते में,
दूर कामयाबी का नजारा दिखाई देता है।
