ग़ज़ल...7
ग़ज़ल...7
करूँ न याद उसे किस तरह भुलाऊँ मैं ।
वफ़ा न आज मिला क्या लहू बहाऊॅं मैं ।।
फ़िज़ा कभी न कभी रंज में रही होगी ।
अभी तबाह हुआ शहर क्या सजाऊॅं मैं ।।
ख़रीद तो न सका वो ख़ुशी कभी यारों ।
ग़रीब ख़ून पसीने बहा नहाऊॅं मैं ।।
ख़ुदा करे कि तुम्हें हर ख़ुशी मुकम्मल हो ।
कि ख़ुश-नशीन ज़हां को ज़रा मनाऊॅं मैं ।।
यहीं कहीं न कहीं हम ख़तें लिखे थे जो।
बना पतंग वही ख़त यहीं उड़ाऊॅं मैं ।।
तमानियत न मिला हो अग़र हमें कह दो ।
यकीन अब न रहा क्या गला कटाऊॅं मैं ।।
(तमानियत-तसल्ली)
कि मुस्कुरा न सका जो वफ़ा यही कहता ।
दग़ा-नशीन उसे ख़ाक में मिलाऊॅं मैं ।।
