गीतिका छंद...
गीतिका छंद...
संग्रहण हिय में करो तुम, प्रेम पावन धारणा ।
प्रेम आतुरता नयन से, दो जगत को मंत्रणा ।।
क्या मिला क्या खो गया है, दुखमयी इस गॉंव में ।
आग किसने अब लगाया, ताप मिलता छॉंव में ।।
डाल शाखें और पत्ते, क्यों जले हैं जंगलें ।
वन हमारे श्वास कारक, बिन मिले क्या मंगलें ।।
वन विपिन कान्तार में ही, देव निवसे पूषणा...
संग्रहण हिय में करो तुम, प्रेम पावन धारणा...
सब सहे हैं जन्म लेकर, मार दुख का मानिए ।
दर्द प्राचीरें यहाॅं के, सुख ढहाते जानिए ।।
गह्वरों का सोत सूखा, प्यास लाकर ढूंढिए ।
सुख कभी ठहरे नहीं हैं, बॉंध बनकर देखिए ।।
जीवनोदक पान दुख का, नीलकंठी तारणा..
संग्रहण हिय में करो तुम, प्रेम पावन धारणा...