गीत प्रकृति का
गीत प्रकृति का
मेघ गरज-गरज छेड़े तान नई सी कोई,
बूँदों के घुँघरू बंधे, नाच-नाच बिजली बावरी हुई।
मत कहो इसे बिजली का कड़कना,
कड़क-कड़क-कर बिजली करे बखान मेघ से अपनी रति का,
ये तो है गीत प्रकृति का।
टिप-टिप बूंदे गिरती, धरा पर सैलाब सा लातीं हैं,
कुछ ही देर में नदियाँ उफन जातीं हैं।
नहीं है ये बाढ़
प्रमाण है ये टीप-टीप करतीं सुरीली बूँदों की गति का,
ये तो है गीत प्रकृति का
सर-सरकर झूमतीं हैं पत्तियाँ,
जब करें वायु के झोंके उनसे बतियां।
ये सरसराहट शोर नहीं है
वायु से मित्रता का सम्बंध है पत्ती का,
ये तो है गीत प्रकृति का।
क्या खूब संगीतकार प्रभु ने इस नभ को बनाया,
अनेकों रंग बदल-बदलकर इसने जग को लुभाया।
ये केवल वृष्टि का मौसम नहीं,
वर्णन है ये गगन द्वारा भावुक हो ईश्वर की स्तुति का,
ये तो है गीत प्रकृति का।