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मधुशिल्पी Shilpi Saxena

Tragedy

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मधुशिल्पी Shilpi Saxena

Tragedy

गीले मन की लकड़ी

गीले मन की लकड़ी

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दर्द की इंतेहा पार हुई जब

सुलगने लगी मन की लकड़ी

लगातार बहती अश्रुधार से

गीली हो गई मन की लकड़ी

सुलगी जब अरमानों की चिता

धूँ-धूकर हर ख्वाब जला

गीली लकड़ी जली न ठीक से

धुआँ-धुआँ संसार हुआ

धुँए की जलन से मेरी

आँखों का बुरा हाल हुआ

देखकर नैनों की लाली को

किसी को इन नैनों से प्यार हुआ

दिल मे छुपी पीड़ा को मेरी

बैरी ये जग न जान सका

रुप की मादकता को सब चाहे

दिल का हाल कोई जान न सका

कातर मुस्कान मे छिपी

ख़ामोशी को पहचान न सका!



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