घूमती दुनिया
घूमती दुनिया
घुमती है दुनिया,
फिर भी बढ़ती जा रही ,
लोगों को अब चादर भी,
कम पड़ती जा रही !!
चाहते सब हैं की,
चादर से पैर ना निकाले,
पर यार ज़रूरते भी तो,
अब बढ़ती जा रही !!
कितने गिले शिकवे करें,
इस दुनिया से ,
ज़िंदगी भी अब मुझसे,
बेवजह लड़ती जा रही !!
सोचा, मिले ख़ुशी तो,
पूछूँ उससे,
तू किस बात पे,
इतनी अकड़ती जा रही !!
और जो करना है ये,
चार पल में कर लो,
वरना ज़िंदगानी भी तो,
हर पल झड़ती जा रही !!