घुंघरू
घुंघरू
भूल के सुध मैं अपने आप की,
रुके ना पैर ऐसी वो ढोल की थाप थी,
अपने बालों को गजरे से सजाया,
इन गालों पर सुर्ख लाल नूर था छाया,
ना राग याद ना जाने क्या गीत के बोल थे,
हर ओर बस घुंघरू बिखरे थे,
खुद से दो बातें मैने की,
कई शिकायते खुदकी खुदसे कर दी,
अपने हिस्से की आज़ादी मैने भी चुरा ली,
अपने लिए एक शाम मैने भी चुरा ली,
अपने पैरों पर मिले निशानों को मैने निहारा,
फिर मुस्कुरा कर अपने आंचल से उन्हे छुपाया,
जो बीत गया वो अतीत बन चुका था,
मेरी जीवन के किताब का बस एक पन्ना बन कर रह गया था,
अब खुदको एक नई सिहायी से लिखना चाहती हूं,
अपने हर निशान को बेपर्दा करना चाहती हूं,
एक अनुठा प्रेम बस खुदसे करना चाहती हूं,
रास्तों पर पड़ी रेत को समेट खुदकी एक राह बनाना चाहती हूं,
मुझमें मेरी मुझ तक की खोज अधूरी है,
जिन गलियों में खोया था कुछ मेरा वो गलियां पीछे छूटी है,
एक हुनर है जिसपर मैं फ़िदा हुई हूं,
शब्दों को भूल नज़रों से सब कह गई हूं,
कुछ कह कर अब चुप हो गई हूं,
बेसब्र थी एक रोज़ अब सब्र रखना सीख गई हूं,।।