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Akanksha Gupta

Romance

4  

Akanksha Gupta

Romance

घर लौट आओ

घर लौट आओ

2 mins
371


दिन ढलने को है अब घर लौट आओ

भटकने से पहले ही घर लौट आओ

पुकारते है तुम्हें ज़िंदगी के तजुर्बे

पुकार सुनो और घर लौट आओ


देह थक रही है फिर भी चल रहे हो

खुद पर इतने सितम क्यों कर रहे हो

दिल के दर्द की कोई दवा तो होगी

क्यों अपने जख्मों को नासूर कर रहे हो


हम सब हैं तन्हा तुम्हारे बिना भी यहां पर

शाद तुम भी नहीं हो तुम हो भी जहां पर

तुम्हारे दिल में यह कशमकश है कैसी

जो तन्हाई को अपना साथी बना रहे हो


घर की दीवारें जो रंगी हुई तेरे रंग में

कह रही कहानी यादें तुम्हारे संग की

बेरंग हैं तुम्हारे बिना याद भी हमारी

आकर इन्हें अपने रंगों से सजाओ

कसम है तुम्हें अब घर लौट आओ


वो कसमें वो वादे जो तुमने किए है

जो लम्हें तुमने हमारे साथ जिए है

उन लम्हों को जीने फिर चले आओ

नई ज़िंदगी बनाने घर लौट आओ


घर लौट आओ तुम्हें आना ही होगा

सपनों को फिर से सजाना ही होगा

लिखना ही होगा तुझे एक नया फ़साना

होगा ही तुझे अब घर लौट कर आना।


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