घर लौट आओ
घर लौट आओ
दिन ढलने को है अब घर लौट आओ
भटकने से पहले ही घर लौट आओ
पुकारते है तुम्हें ज़िंदगी के तजुर्बे
पुकार सुनो और घर लौट आओ
देह थक रही है फिर भी चल रहे हो
खुद पर इतने सितम क्यों कर रहे हो
दिल के दर्द की कोई दवा तो होगी
क्यों अपने जख्मों को नासूर कर रहे हो
हम सब हैं तन्हा तुम्हारे बिना भी यहां पर
शाद तुम भी नहीं हो तुम हो भी जहां पर
तुम्हारे दिल में यह कशमकश है कैसी
जो तन्हाई को अपना साथी बना रहे हो
घर की दीवारें जो रंगी हुई तेरे रंग में
कह रही कहानी यादें तुम्हारे संग की
बेरंग हैं तुम्हारे बिना याद भी हमारी
आकर इन्हें अपने रंगों से सजाओ
कसम है तुम्हें अब घर लौट आओ
वो कसमें वो वादे जो तुमने किए है
जो लम्हें तुमने हमारे साथ जिए है
उन लम्हों को जीने फिर चले आओ
नई ज़िंदगी बनाने घर लौट आओ
घर लौट आओ तुम्हें आना ही होगा
सपनों को फिर से सजाना ही होगा
लिखना ही होगा तुझे एक नया फ़साना
होगा ही तुझे अब घर लौट कर आना।