घर आ गया
घर आ गया
जानता मैं नहीं के किधर आ गया।
छोड़ कर देखो अपना ही घर आ गया।
दे रहा था कोई बद्दुआ क्या मुझे,
गाँव से मैं निकल के नगर आ गया।
जो गए मुझसे पहले थे इस राह पे,
ले के सबकी मैं खैर ओ खबर आ गया।
रोक सब थे रहे मैं रुका ही नहीं,
कर अधूरा मैं पूरा सफर आ गया।
बीज इक जो दबाया था धरती तले,
मेरी नज़रों में बन के शजर आ गया।