STORYMIRROR

डॉ दिलीप बच्चानी

Abstract

4  

डॉ दिलीप बच्चानी

Abstract

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1 min
309


न सदा दिन रहा है,न सदा रात रहेगी

मेघों को बरसने दो ये नदी फिर बहेगी। 


गिर जाते वट वृक्ष समय विपरीत हो तो

हरी रहेगी वो डाली जो तूफान सहेगी।


मिटेगी कालिमा धवल आकाश होगा

निशानी स्मृति पटल पर फिर भी रहेगी। 


सहअस्तित्व,समन्वय और सजगता

इस मूल मंत्र की कहानी पीढ़ियाँ कहेगी। 


कई प्रलय काल भी देखे हैं इस धरा ने

उस परम् की सत्ता न ढही है न ढहेगी। 


मुश्किलें आती रही हैं आती जाती रहेंगी

जिंदगी रुकती नहीं है न अब रुकेगी। 


         


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract