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डॉ दिलीप बच्चानी

Abstract

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डॉ दिलीप बच्चानी

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गजल

गजल

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वो स्लेट पे लिखना मिटाना याद आ गया

तस्वीर देख के गुजरा जमाना याद आ गया। 


माँ से छुप के चुपके से खा भी लेते थे इसे

जुबाँ पर स्वाद वो ही पुराना याद आ गया। 


जमीन पर बनाकर लकीरे कई खेल खेले

हारने औ जितने का फसाना याद आ गया। 


अब कहां है लिखावट का वो हुनर पहले सा

छड़ी की मार का किस्सा पुराना याद आ गया। 


स्लेट पर लिखकर एक दूजे से बात करते थे

बचपने का वो सुहाना याराना याद आ गया। 


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