गजल
गजल


शोर के भीतर सन्नाटे सुनना सीख रहा हूँ
उलझे उलझे धागों को बुनना सीख रहा हूँ।
सांसों तक पर पहरा बैठाती दुनियादारी
खुद की खातिर खुद को चुनना सीख रहा हूँ।
मै आपकी बातो को किस्सा कह दूँ कैसे
मैं खुद किस्सा कहना सुनना सीख रहा हूँ।
दौड़ भाग कर सब कुछ करके देख लिया
धीरे धीरे अब कुछ रुकना सीख रहा हूँ।
संबंधों का तानाबाना भरम का मायाजाल
जांच परख कर मिलना जुलना सीख रहा हूँ।