ग़ज़ल
ग़ज़ल
खामोशी तो एक बहाना था
शायद उसे कुछ बताना था
मंजिल उसकी थी
मैं उसके साथ था
मैं था अकेला
लेकिन उसके साथ काफ़िला था
जिन्दगी बीत रही थी अनचाहे कशमकश में
कि मेरी राहों को तेरी राहों से दूर जाना था
रास्ता बदलने का इरादा उसका था
अनजाने रास्तों पर कहाँ हमारा ठिकाना था
शाम - ए गम करवट बदलता नहीं
क्योंकि हर लम्हा ही उसका था
नींद आई हमें कुछ इस तरह
कि सपनों में उनका ही आना था
ना मिलने का इरादा मुसलसल रहा
ना कोई पैगाम उसका आया था
हसरतें अधूरी ही रह गई
रात का अंधेरा और खामोश सन्नाटा था
आज क्यूँ है तू अकेला ये दिल सवाल करता हैं
उसके साथ तो लोग थे
क्या खुदा भी उसका था...
