ग़ज़ल
ग़ज़ल
मेरा दिल दुखा के कहो क्या मिला है
यूँ मुझको जला के कहो क्या मिला है।।
मैं बिखरी पड़ी थी, यूँ ही ज़र्रा-ज़र्रा
दिखावा दिखा के कहो क्या मिला है।।
रखे थे ज़हन में हमेशा मुझे तुम
मगर अब भूला के कहो क्या मिला है।।
लबों की हँसी जिसकी भाती थी तुमको
उसी को रुला के कहो क्या मिला है ।।
भटकती रहूंगी तुम्हें याद कर-के
दीवाना बना के कहो क्या मिला है ।।
स्वरा तो हमेशा तुम्हारी रही है
भला आजमा के कहो क्या मिला है।।