ग़ज़ल- गरीबी पर करो हमला
ग़ज़ल- गरीबी पर करो हमला
गरीबी पर करो हमला जो टकराना ज़रूरी है।
बहुत भारी समस्या है जो सुलझाना ज़रूरी है।
जरा देखो यहाँ बच्चे बिना भोजन तड़पते हैं,
मिसाइल से कहीं ज्यादा यहाँ खाना ज़रूरी है।
यहाँ नफ़रत के बम-गोलों की बदबू खूब फैली है,
चलो जग में अमन का फूल महकाना ज़रूरी है।
किसी का बाप मरता है कोई शौहर को खोता है,
यहाँ परिवार न टूटे तो जंग रुकवाना ज़रूरी है।
बुझी है आग चूल्हों में मगर जलते हैं घर देखो,
दिलों में जो जमी है बर्फ वो पिघलाना ज़रूरी है।
शराफ़त खो गयी है अब, कहीं ग़ैरत नहीं दिखती,
सभी को आईना सच का, ये दिखलाना ज़रूरी है।
न चुप रहना न तुम छिपना उठा आवाज़ चिल्लाओ,
अभी इंसानियत जिन्दा ये जतलाना ज़रूरी है।
कलम में जोर है कितना समय आने पे दिखता है,
भले धमकी मिले पर सच को बतलाना ज़रूरी है।
जवानी की कहानी कुछ अधूरी सी नहीं लिखना,
दिलों में पल रहे अरमान सुलगाना ज़रूरी है।
न घबराओ रखो हिम्मत करो कोशिश बढ़ो आगे,
मुकम्मल जिंदगी करने को अफ़साना ज़रूरी है।
बहुत गहरा अँधेरा ये नहीं दिखता उजाला है,
मगर 'अवि' का भरोसा दिल में चमकाना ज़रूरी है।
