घड़ी और गरीब मध्यम परिवार
घड़ी और गरीब मध्यम परिवार
घड़ी की सुई को देखो
कितनी प्यारी लगती है
टिक टिक करते करते
समय की पहचान कराती है।
छोटी हूं मैं सेकंड की सुई कहलाती हूं।
नहीं किसी से मतलब मुझको
अपनी धुन चलती जाती हूँ।
छोटी इकाई को कोई नहीं समझता
पर इसके बिना कोई चल नहीं पाता है।
रुक जाये कुछ पल ही तो
अंधकार सा छा जाता है।
समाज का भी है हाल वही
छोटो के बिना ना कोई सही
मध्यम समाज अड़ जाये अगर तो
पूँजीपति एक कदम ना चल पायेगा
अमीरी का दम्भ भरने वाले
उनपर कंगाली सा छा जायेगा।
सेकंड की सुई के बिना
मिनट और घंटा की सुई अधूरे हैं
मान सम्मान दो हर तबके को
इनके बिना कहाँ वो पूरे हैं।
सेकंड की सुई की मेहनत सबको दिखता है
जिसका फल घंटे और मिनट को मिलता है
गरीबो का मेहनत भी सबको दिखता है
जिसका फल अमीरों को मिलता है
जिसका फल अमीरों को मिलता है।