STORYMIRROR

ANIRUDH PRAKASH

Abstract

4  

ANIRUDH PRAKASH

Abstract

Ghazal no. 9

Ghazal no. 9

2 mins
275

बड़ी मुद्दत से दिल को इश्क़ का काम नहीं मिला

मेरे ग़मों को तबसे कभी आराम नहीं मिला

कहते हैं झूठ की उम्र लम्बी नहीं होती

हमें तो यहाँ कोई काज़िब नाकाम नहीं मिला

हुस्न दुनिया में तब तक न-दीदा ही रहा 

जब तक उसे इश्क़ का नाम नहीं मिला

साज़िश होती है पोशीदा मोहब्बत तो नहीं 

वो शख़्स खुलकर हमसे कभी सरेआम नहीं मिला

जिस्म की हवस से आगे मर्द की मोहब्बत बढ़ी ही नहीं

यहाँ किसी मीरा को उसका श्याम नहीं मिला

इबादतगाह में तो हमें मिले कई खूँ-रेज़ 

मय-कदे में हमें कभी कोई ख़ून-आशाम नहीं मिला

कागज़ पर गिरे अश्कों ने जाहिर कर दिया मेरा नाम 

बेनाम लिखा खत भी उन्हें बेनाम नहीं मिला

तोड़ते रहे वो दिल अपने दीवानों का बस ये कहकर कि 

रोज़गार-ए-इश्क़ में उन्हें कोई ख़ुश-काम नहीं मिला

बेखुद रहा मैं हमेशा तेरी महफ़िल में 

ये और बात है वहाँ कभी मुझे कोई जाम नहीं मिला

क्यों ना करे गुनाह खुलके बशर यहाँ पर 

दुनिया में तो कितने गुनाहों को उनका अंजाम नहीं मिला

मेरी हर एक नज़्म हर एक ग़ज़ल में था उनका नाम 

और वो कहते हैं उन्हें मेरी उल्फत का कोई पैग़ाम नहीं मिला

तूने मेरी किताब-ए-इश्क़ की तम्हीद कभी लिखी ही नहीं 

सो मेरी दास्ताँ-ए-इश्क़ को कभी उसका फ़र्जाम नहीं मिला

मजनूँ भटका सहरा में तो फ़रहाद ने कोह-कनी की 

कौन कहता है दीवानों को उनकी वफ़ा का इनाम नहीं मिला

महकता रहा जिस्म जिनका इत्र-ए-उम्मीद से गर्दिश-ए-अय्याम में भी 

भूलकर भी गले उनसे कभी मौसम-ए-आलाम नहीं मिला


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract